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12. आर्कमिडिज का पेंज (ARCHIMEDES SCREW)
क्रिया विधि : हैण्डल को तब तक घुमाइये जब तक पानी का ऊपर से
गिरना शुरू न हो जाये।
सिध्दांत : यह प्रदर्शन स्कू्र के सिध्दांत का उपयोग दर्शाता
हैं। आमतौर पर स्कू्र से घुमाने पर वह आगे बढ़ता है, परन्तु
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यहां स्कू्र स्थिर है इसलिये प्रत्येक घुमाव में स्कू्र के
स्थान पर पानी पाइप में ऊपर चढ़ता है। पाइप के ऊपरी सिरे से
पानी के बाहर निकलने तक पाइप में चढ़ता रहता है। |
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13. खुर्दबीन (PERISCOPE)
क्रिया विधि : निचले दर्पण में देखिए। ऊपर स्थित या अधिक
दूरी पर स्थित (हमारे नेत्र के दृष्टि-क्षेत्र से बाहर
स्थित) वस्तु हमें दिखाई देती है।
सिध्दांत : यह प्रादर्श प्रकाश के
परावर्तन के नियम पर आधारित है। यह उर्ध्वाधर अक्ष से 45
अंश झुकाव पर एक दूसरे के ऊपर रखे दो दर्पणों का
सम्मिश्रण है। ऊपरी दर्पण, दूर वस्तु से आने वाली किरणों
को निचले दर्पण पर परावर्तित करता है, जो पुन: परावर्तित
होकर हमारे |
नेत्रों में पहुंचती है और वस्तु हमें दिखाई
देती है। यह यंत्र पनडुब्बी के लिये महत्वपूर्ण है। |
14. खगोलीय गति (CELESTIAL
MOTION)
क्रिया विधि : गेंद को ट्रेक में रखिए और उसे शंकु में
घूमने दीजिए।
सिध्दांत : जब गेंद को टे्रक में डाला
जाता है तब उसमें उत्पन्न घूर्णन गति के कारण गेद पर
अपकेन्द्रीय बल उत्पन्न हो जाता है। |
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यह अपकेन्द्रीय बल
रिम (घूर्णन पथ) के बाहर की ओर कार्य करता है और
गुरुत्वाकर्षण बल का विरोध करता है। इसी कारण से गेंद
शंकु में नीचे आने में बहुत अधिक समय लेता है। घूर्णन पथ
की त्रिज्या कम होने पर, कोणीय संवेग के संरक्षण नियम से
गेंद का कोणीय वेग बढ़ जाता है। |
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15. क्रिया-प्रतिक्रिया (ACTION
AND REACTION)
या विधि : कुर्सी पर बैठकर पहिये को घड़ी की सुई की दिशा
में या उसके विपरीत दिशा में घुमाइये।
सिध्दांत : जब आप पहिये को घुमाते
हैं तब आपके शरीर को विपरीत दिशा में एक प्रतिक्रियात्मक
बल मिलता है, क्योंकि न्यूटन के अनुसार प्रत्येक क्रिया
की, उसके बराबर किन्तु विपरीत दिशा में एक प्रतिक्रिया
अवश्य होती है। |
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16. घूमता पहिया (CENTRIFUGAL
WHEEL)
क्रिया विधि : ड्रम के रिम पर बल लगाकर उसमें घूर्णन गति
उत्पन्न कीजिए। एक छोटी थैली रिम पर रख देने पर वह रिम
के साथ बिना गिरे ही लगातार परिक्रमा करती रहती है।
सिध्दांत : घूर्णन गति करते हुए रिम के प्रत्येक बिन्दु
पर केन्द्र से बाहर की ओर एक बल कार्य करता है, जिसे
अपकेन्द्रीय बल कहा जाता है। यह अपकेन्द्रीय बल
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल को संतुलित |
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भी कर देता है। जिसके
कारण उर्ध्वाधर ऊपर की स्थिति में आने पर भी न तो थैली
गिरती है और न ही छर्रें। |
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प्रादर्शों
के निर्माता
बी.एम. बिरला साइन्स सेन्टर, हैदराबाद |
उपरोक्त सभी प्रकार के प्रादर्श बी.एम. बिरला साइन्स
सेन्टर, हैदराबाद के द्वारा निर्मित किये गये हैं। यह
सेन्टर देश में एक प्रतिष्ठित साइन्स सेन्टर के रूप में
उभरा है। यह एक पंजीकृत लोकहितैषी संस्था है जो उच्च
शिक्षा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में महत्व और गुणवत्ता
के कारण प्रख्यात है। इस केन्द्र के अन्तर्गत कई विभाग
कार्यरत है। जैसे- एक तारामण्डल , एक विज्ञान संग्रहालय,
गणित और कम्प्यूटर विज्ञान उपयोग केन्द्र इत्यादि। इस
प्रकार यह सेन्टर विज्ञान के क्षेत्र में उच्च शिक्षा और
अनुसंधान के प्रति पूर्णत: समर्पित है।
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